Bandaa Singh Chaudhary Review: बंदा सिंह चौधरी नाम की ये फिल्म एक बहुत ही अहम दौर की स्टोरी बताती है। ये वो दौर था जब 1971 की जंग के बाद भारत में बहुत उथल-पुथल मची हुई थी और पंजाब में आतंकवाद बढ़ रहा था। ये फिल्म 70 और 80 के दशक की कहानी है। फिल्म बनाने वाले की मंशा एकदम सटीक है। वो ये दिखाना चाहते हैं कि कैसे लोगों को न्याय मिलना चाहिए और हर किसी को बराबर का हक मिलना चाहिए।
लेकिन फिल्म को बनाने के तरीके में थोड़ी सी गलती हुई है। कई जगहों पर फिल्म थोड़ी ज्यादा ही इमोशनल हो जाती है, जिससे असली बात छुप जाती है। ये फिल्म 1975 से 1984 के बीच के समय की है। इस दौरान पंजाब में बहुत बड़ी सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। फिल्म ये दिखाती है कि इस हिंसा से आम लोगों का जीवन कितना बुरा हुआ।
80 के दशक में पंजाब: आतंकवाद और एक व्यक्ति की लड़ाई
अस्सी के दशक में पंजाब की हालत बहुत खराब थी। मानो पूरे इलाके में एक अंधेरा छा गया हो। यहां आतंकवादियों का दबदबा चल रहा था। ये लोग दूसरे देशों से पैसे और हथियार लाते थे और लोगों को डरा धमकाकर अपनी मनमानी करते थे। इनका खास निशाना हिंदू थे। ये लोग हिंदुओं को बहुत परेशान करते थे। लेकिन हर जगह ऐसा नहीं था। कुछ गांवों में लोग आपस में मिलजुलकर रहते थे। सिख और हिंदू भाई-बहन की तरह रहते थे। ये लोग नहीं चाहते थे कि इनके बीच कोई दरार पड़े।
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे आम लोग इस मुश्किल दौर से गुजर रहे थे। लोग बहुत डरे हुए थे और कुछ कर भी नहीं पा रहे थे। ऐसे में बंदा सिंह चौधरी नाम का एक शख्स सामने आया। उसने हिम्मत करके आतंकवादियों का सामना किया। वो अकेला ही अपने गांव को बचाने की लड़ाई लड़ रहा था। लेकिन फिल्म में बाकी लोगों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया गया। ऐसा लगता है कि सिर्फ बंदा सिंह चौधरी ही इस लड़ाई में अकेला था।
फिल्म में आतंकवादियों को बहुत ही खौफनाक तरीके से दिखाया गया है। ऐसा लगता है कि ये लोग किसी के आदेश पर काम करते हैं और इनके पास कोई इंसानियत नहीं है।
कुछ इस तरह की स्टोरी है बंदा सिंह चौधरी मूवी की
बंदा सिंह चौधरी नाम का एक आदमी था, जो पंजाब के एक छोटे से विलेज में रहता था। वो बिहार से आया था और कई पीढ़ियों से वहीं रह रहा था। उसकी शादी एक बहुत ही मजबूत और निडर महिला से हुई थी, जो लड़कियों को तलवारबाजी सिखाती थी। उनकी शांत जिंदगी तब बिगड़ गई जब कुछ लोगों ने उन्हें अपने घर से जाने के लिए मजबूर किया, सिर्फ इसलिए कि वो हिंदू थे। उस वक्त पंजाब में बहुत अशांति थी। लोगों को एक-दूसरे से लड़ने के लिए उकसाया जा रहा था।
बंदा को बहुत मुश्किल हालात से गुजरना पड़ा। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और गांव वालों को एकजुट करके उन लोगों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।ये फिल्म ये बताना चाहती है कि उस वक्त पंजाब में क्या हो रहा था। कैसे लोगों को अपनी ही जमीन छोड़कर जाना पड़ रहा था। ये फिल्म ये भी बताती है कि बाहरी लोग हमारे बीच में नफरत फैलाते हैं।
फिल्म अच्छी है लेकिन कुछ जगहों पर थोड़ी ज्यादा भावुक हो जाती है। कई सीन ऐसे हैं जो असलियत से थोड़े दूर-दूर लगते हैं।अच्छी बात ये है कि ये फिल्म हमें इतिहास के बारे में बताती है। ये हमें याद दिलाती है कि कैसे राजनीति की वजह से आम लोगों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है।
कुल मिलाकर, ये फिल्म थोड़ी सी भावुक जरूर है, लेकिन ये एक महत्वपूर्ण विषय पर बनी है। ये हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हमें आपस में मिलकर रहना चाहिए और किसी को भी परेशान नहीं करना चाहिए।